एक बार की बात है। फ्रांस के विद्वानों ने नागरिकों से लेख आमंत्रित किए।
सर्वश्रेष्ठ लेख के लिए पुरस्कार की घोषणा की गई थी। एक लेख नेपोलियन बोनापार्ट ने
भी भेजा था। नेपोलियन के लेख को ही सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। कुछ समय
बाद जब नेपोलियन सम्राट बन गए तब वे इस बात को लगभग भूल चुके थे।ने
नेपोलियन का एक मंत्री था टेलीरांत। उसे इस बात की जानकारी कहीं से मिल गई
कि सम्राट नेपोलियन एक लेख लिखा था जो पुरस्कृत हुआ था। तब उसने अपने एक
विशेष व्यक्ति को भेजकर उस लेख की मूलप्रति मंगवा ली। एक दिन उसने उस
मूलप्रति को सम्राट के सामने रखकर हंसते हुए पूछा, सम्राट इस लेख के लेखक
को आप जानते हैं?
नेपोलियन उस लेख को देखकर कुछ सोचने लगे। उनकी मुद्रा देख टेलीरांत ने सोचा
कि सम्राट खुश होंगे और उसे पुरस्कार देंगे। कुछ देर सोचने के उपरांत
सम्राट नेपोलियन ने उस प्रति को अपने हाथ में लिया और उसे लेकर कमरे मे जल
रही अंगीठी के पास गए। वह कुछ देर उसे देखते रहे और फिर अंगीठी में उस लेख
को डाल दिया जो कि जल गया।
यह सब टेलीरांत की समझ में नहीं आया। उसने नेपोलियन से पूछा, सम्राट इस लेख को आपने क्यों जला दिया?
नेपोलियन का जवाब था, यह लेख मेरे एक समय की उपलब्धि थी, लेकिन आज के लिए
इसका कोई महत्व नहीं है। इसलिए मैंने इस लेख को जला दिया। टेलीरांत समझ गया
कि देशकाल की परिस्थिति में चिंतन को नया रूप देते रहना चाहिए। ऐसा न हो
कि हम पुरानी प्रशंसाओं में ही डूबे रहें।
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