भारतीय हिंदू साधुओं का एक विशेष पहनावा होता है जो हर साधु का अपना अलग
होता है। कुछ साधु केवल सिर पर भस्म लगाते हैं, कुछ कानों में कुंडल पहनते
हैं, कुछ माला पहनते हैं और कुछ अघोरियों की तरह बिल्कुल नग्न और सभी चीजों
से परहेज करने वाले होते हैं।
माला
साधु समाज में माला का भी विशेष महत्व है। वैष्णव संप्रदाय में अधिकांश
जहां तुलसी की माला पहनते हैं वहीं शैव में रुद्राक्ष की माला का उपयोग
होता है। उदासीन में बाध्यता नहीं है। अखाड़ा या उपसंप्रदाय परंपराओं के
अनुसार इन मालाओं में भी भिन्नता होती है।
जटा
कई नागा साधु बड़ी जटा रखते हैं। मोटी-मोटी जटाओं की देखरेख भी काफी जतन से
की जाती है। इनमें कोई रुद्राक्ष तो कोई फूलों की माला पहन इन्हें आकर्षक
रूप भी देता है।
कमंडल, चिमटा और त्रिशूल
कुछ साधु-संत कमंडल तो कुछ त्रिशूल या चिमटा साथ रखते हैं। कुछ साधु धातु
के तो कुछ लौकी (तुंबे) के कमंडल का उपयोग करते हैं। नागा साधुओं को योद्धा
भी माना जाता है। कई साधु शस्त्र के रूप में तलवार, त्रिशूल, फरसा साथ
रखते हैं।
तिलक
साधु-संतों में शृंगार का अपना महत्व है, विशेषकर तिलक का। वैष्णव संप्रदाय
के साधु-संत खड़ा तिलक लगाते हैं। इसमें भी अखाड़ों व उप संप्रदाय के
अनुसार आकृति या रंग में परिवर्तन होता है। वैष्णव संप्रदाय में कई प्रकार
के तिलक होते हैं। शैव संप्रदाय में आड़ा तिलक लगाया जाता है। उदासीन में
खड़ा-आड़ा दोनों ही प्रकार के तिलक लगाए जा सकते हैं। तिलक लगाने में
साधु-संत विशेष एकाग्रता बरतते हैं। तिलक इतनी सफाई से लगाया जाता है कि
अमूमन रोज ही उनका तिलक एक समान नजर आता है।
वस्त्र
वैष्णव संप्रदाय में ज्यादातर साधु-संत श्वेत, कसाय या पीतांबरी वस्त्र का
उपयोग करते हैं, वहीं शैव संप्रदाय में भगवा रंग के वस्त्रों का अधिक उपयोग
होता है। उदासीन में दोनों ही प्रकार के वस्त्रों का चलन है। साथ ही
साधु-संत रत्नों से भी सुशोभित होते हैं।
भस्म
भगवान शिव भस्म रमाते हैं। अपने अराध्य की ही तरह शैव संप्रदाय के नागा
साधुओं को भस्म रमाना अति प्रिय होता है। रोजाना स्नान के बाद ये अपने शरीर
पर भस्म लगाते हैं। उदासीन में भी कई साधु भस्म रमाते हैं।
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